सुप्रीम कोर्ट ने दी 28 सप्ताह के गर्भपात की अनुमति, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) एक्ट 2021 में ये हैं नियम

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने एक दुष्कर्म पीड़िता को करीब 28 सप्ताह के अपने भ्रूण का गर्भपात कराने की सोमवार को अनुमति दे दी।

न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने आदेश पारित करते कहा कि विवाह के बाद गर्भधारण खुशी का अवसर होता है, लेकिन यौन उत्पीड़न के बाद यह महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

पीठ ने 25 साल की एक महिला की याचिका से संबंधित मेडिकल रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर लेने के बाद याचिकाकर्ता से गर्भावस्था समाप्त करने की प्रक्रिया से गुजरने के लिए उसे मंगलवार को अस्पताल आने को कहा।

शीर्ष अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि यदि भ्रूण जीवित पाया जाता है तो अस्पताल को उसके जीवित रहने को सुनिश्चित करने के लिए सभी सुविधाएं देनी होंगी।

इसके बाद सरकार कानून के अनुसार बच्चे को गोद लेना सुनिश्चित कर सकता है।

शीर्ष न्यायाल ने शनिवार को इस मामले में (दुषकर्म पीड़िता की) गर्भपात कराने की याचिका को 12 दिनों तक टालने पर गुजरात उच्च न्यायालय की कड़ी आलोचना करते हुए कहा था कि ऐसे मामले में किसी प्रकार की लापरवाही नहीं, बल्कि की तत्परतापूर्वक निपटा जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति नागरत्ना और न्यायमूर्ति भुइयां की पीठ ने गुजरात के एक मामले का स्वत: संज्ञान लेकर ‘विशेष सुनवाई’ करते हुए भ्रूण को हटाने की संभावना का पता लगाने के लिए भरूच के एक अस्पताल के मेडिकल बोर्ड से एक नई रिपोर्ट पेश करने का निर्देश देते हुए कहा था कि वह इस मामले में सोमवार को अगली सुनवाई कर इस मसले पर विचार करेगी।

पीड़िता के अधिवक्ता ने पीठ के समक्ष कहा था कि उच्च न्यायालय ने मामले की तारीख 23 अगस्त तय की है, जिससे उसकी गर्भावस्था 28 सप्ताह की हो जाएगी। वकील ने कहा था कि हालांकि, मामला सात अगस्त को दायर किया गया था और 11 अगस्त को सुनवाई हुई थी।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने यह भी कहा था कि इस मामले में उच्च न्यायालय का आदेश रिकॉर्ड पर भी उपलब्ध नहीं था।

शीर्ष अदालत की पीठ ने उच्च न्यायालय का आदेश उपलब्ध नहीं होने की याचिकाकर्ता के वकील की बात पर कहा था, “अगर विवादित आदेश मौजूद ही नहीं है तो हम कोई आदेश कैसे पारित कर सकते हैं। इस मामले को स्थगित करने में मूल्यवान दिन बर्बाद हो गए हैं। देखिए, ऐसे मामलों में तात्कालिकता की भावना होनी चाहिए न कि उदासीन रवैया। हमें ऐसी टिप्पणियाँ करने के लिए खेद है। हम इसे सोमवार को पहले मामले के रूप में सूचीबद्ध करेंगे।”

शीर्ष अदालत ने आगे कहा था कि चूंकि कीमती समय पहले ही बर्बाद हो चुका है, इसलिए भरूच के मेडिकल बोर्ड से नई रिपोर्ट मांगी जा सकती है।

न्यायमूर्ति नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ कहा था, “हम याचिकाकर्ता को एक बार फिर से पूछताछ के लिए केएमसीआरआई के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश देते हैं और नवीनतम स्थिति रिपोर्ट रविवार शाम छह बजे तक इस अदालत में प्रस्तुत की जा सकती है।”

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