79.01 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को मिला अब तक लाभ
गाजियाबाद व मुजफ्फरनगर टॉप टेन में शामिल
मेरठ। प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व दिवस अभियान गर्भवती महिलाओं के लिए संजीवनी बन रहा है। प्रदेश सरकार द्वारा ताजा जारी की गयी रैंकिंग में यूपी में मेरठ टॉप 3 में पहुंच गया है। पहले स्थान पर पीलीभीत , दूसरे स्थान पर बदायूं, तीसरे स्थान पर मेरठ व चौथे स्थान पर संत कबीर नगर व पांचवें स्थान पर आगरा ने जगह बनायी है। मेरठ -सहारनपुर मंडल में केवल गाजियाबाद और मुजफ्फरनगर ने टॉप 10 अपनी जगह बनाया है।यह आंकड़े 28 फरवरी है।
पीएमएसएमए में मेरठ समेत प्रदेश के सभी 75 जिलों को टारगेट दिया गया था। मेरठ को 99727 का टारगेट दिया था । जिसमे इस साल 28 फरवरी तक मेरठ में जिले के स्वास्थ्य केन्द्रो पर अभी तक 98651 गर्भवती महिलाओं की जांच की गयी। जिसमें मेरठ का प्रतिशत 98.92 रहा है। पहले स्थान पर रहे पीलीभीत को 58093 का टारगेट दिया गया था। जिसमें पीलीभीत ने 67140 टारगेट अचीव किया है। यानी 115.57 प्रतिशत टारगेट रहा। बदायूँ को 108755 का टारगेट दिया गया था। लेकिन उसने इस दौरान 108469 महिलाओं की जांच की । उसका प्रतिशत 100.31 रहा। तीसरे स्थान पर रहे मेरठ को 99727 का टारगेट दिया गया था। लेकिन उसने इस दौरान 98651 गर्भवती महिलाओं की जांच की। मेरठ-सहारनपुर मंडल में गाजियाबाद को 91103 का टारगेट दिया था जिसमें उसे 67889 गर्भवती महिलाओं की जांच की। जिसका प्रतिशत 74.52प्रतिशत रहा। प्रदेश उसकी रैंकिंग छटी रही। वही मुजफ्फरनगर को 75201 का टारगेट दिया गया था। जिसमें उसने 55066 गर्भवती महिलाओं की जांच की। उसका प्रतिशत प्रदेश स्तर पर नौंवा रहा।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा अशोक कटारिया ने बताया कि महिलाएं किसी भी समाज की मजबूत स्तंभ होती हैं। जब हम महिलाओं और बच्चों की समग्र देखभाल करेंगे तभी देश का सतत विकास संभव है। एक गर्भवती महिला के निधन से ना केवल बच्चों से माँ का आंचल छिन जाता है बल्कि पूरा का पूरा परिवार ही बिखर जाता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की उचित देखभाल और प्रसव संबंधी जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाया जाता है । ताकि गर्भवती महिलाओं के पोषण पर सही ध्यान दिया जा सके।
आरसीएच नोडल अधिकारी डा.कांति प्रसाद ने बताया कि माँ बनना प्रकृति का सबसे बड़ा वरदान माना जाता है लेकिन अपने देश में आज भी यह कुछ महिलाओं के लिए मौत की सजा से कम नहीं है। देश में हर साल जन्म देते समय तकरीबन 45000 महिलाएं प्रसव के दौरान अपनी जान गंवा देती हैं। देश में जन्म देते समय प्रति 100,000 महिलाओं में से 167 महिलाएं मौत के मुंह में चली जाती हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक भारत में मातृ मृत्यु दर में तेजी से कमी आ रही है। वर्ष 2010-12 में मातृ मृत्यु दर 178, 2007-2009 में 212 जबकि 2004-2006 में मातृ मृत्यु दर 254 रही। देश ने 1990 से 2011-13 की अवधि में 47 प्रतिशत की वैश्विक उपलब्धि की तुलना में मातृ मृत्यु दर को 65 प्रतिशत से ज्यादा घटाने में सफलता हासिल की है।
जिला सलाहकार मातृ स्वास्थ्य इलमा अजीम ने बताया कि अशिक्षा, जानकारी की कमी, समुचित स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, कुपोषण, कच्ची उम्र में विवाह, बिना तैयारी के गर्भधारण आदि कुछ कारणों की वजह से माँ बनने का खूबसूरत अहसास कई महिलाओं के लिए जानलेवा और जोखिम भरा साबित होता है। कई मामलों में माँ या नवजात शिशु या दोनो की ही मौत हो जाती है। ज्यादातर मातृ मृत्यु की वजह बच्चे को जन्म देते वक्त अत्यधिक रक्त स्राव के कारण होती है। इसके अलावा इंफेक्शन, असुरक्षित गर्भपात या ब्लड प्रेशर भी अहम वजहें हैं। प्रसव के दौरान लगभग 30 प्रतिशत महिलाओं को आपात सहायता की आवश्यकता होती है। गर्भावस्था से जुड़ी दिक्कतों के बारे में सही जानकारी न होने तथा समय पर मेडिकल सुविधाओं के ना मिलने या फिर बिना डॉक्टर की मदद के प्रसव कराने के कारण भी मौतें हो जाती है। जच्चा और बच्चा की सेहत को लेकर आशा कार्यकर्ताओं का अहम रोल होता है लेकिन इनकी कमी से कई महिलाएं प्रसव पूर्व न्यूनतम स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रह जाती हैं। समस्त मातृ मौतों में से लगभग 10 प्रतिशत मौतें गर्भपात से संबंधित जटिलताओं के कारण होती हैं।
इस कार्यक्रम की शुरुआत इस आधार पर की गयी है, कि भारत में हर एक गर्भवती महिला का चिकित्सा अधिकारी द्वारा परीक्षण एवं पीएमएसएमए के दौरान उचित तरीके से कम से कम एक बार जांच की जाए तथा इस अभियान का उचित पालन किया जाए, तो यह अभियान हमारे देश में होने वाली मातृ मृत्यु की संख्या को कम करने में महत्वपूर्ण एवं निर्णायक भूमिका निभाएगा।