थोड़ी सी  सावधानी से प्री मैच्योर बेबी की आंखों की रोशनी को बचाया जा सकता है – डा कीर्ति जैन 

कम वजन वाले नवजात बच्चों में इस बीमारी के लक्षण सबसे अधिक 

मेरठ। किसी भी व्यक्ति की आंखे की रोशनी शरीर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। अगर वह बचपन से ही चली जाए तो उस व्यक्ति पर क्या बीतती होगी आप अपने आप अंदाज लगा सकते है। मेरठ की आई रोग विशेषज्ञ डा कीर्ति जैन ऐसे ही बच्चों को रोशनी दिलाने में जुटी हुई । जो प्री मैचयार होते है जिनका वजन कम होता है। डा. कीर्ति जैन नन्ही आंखे प्रोजेक्ट के तहत अभी तक दो हजार से ज्यादा स्किनिंग कर चुकी है। जिसमें से 840 उनकी संस्था अरोण्य फाउडेशन फा़ॅर पीपुल द्वारा  नवजात बच्चों की जांच की गयी। जिसमें 84 नवजात बच्चों में अंधा करने वाली बीमारी पाई गयी।समय रहते इलाज होने पर नन्हीं   आांखों की रोशनी बच गयी। 

डा. जैन के अनुसार  80% नवजात शिशु को हम सब मिलकर अंधा होने से बचा सकते हैं। उन्होंने बताया कि ROP (Retinopathy of Prematurity) नवजात शिशु की आँख के परदे पर खराब खून की नसे बनने की एक बीमारी है जिसमें अगर समय रहते जाँच और इलाज न हो तो शिशु पूरी ज़िन्दगी के लिए अंधा हो सकता है।

बीमारी किसे होती है?

34 हफ्ते से पहले पैदा शिशु में

2 किलो से कम वजन

शिशु को O2 लगना\खून चड़ना\इंफेक्शन होना\अन्या

क्यों होती है?

शिशु की आँख का परदा गर्भ के नौवे महीने में बनत| हैं। शिशु अगर समय से पहले पैदा होता है तो उसकी आंख का पर्दा  पूरा नहीं बना होता । मा के गर्भ के बाहर ये पर्दा ठीक भी बन सकता हैं और खराब भी । अगर आंख का परदा खराब बना| हैं और समय पर जाँच व इलाज न हो तो पर्दा अपनी जगह से हट सकता है।

ROP स्क्रीनिंग (परदे की जांच) कब कराये?

जन्म के बाद 15 से 30 दिन के बीच में जांच आवश्य करानी चाहिए । उन्होंने बताया यह बीमारी राष्ट्रीय स्तर पर स्तरहै। भ|रत में सबसे  ज्यादा प्रीटर्म  बच्चे पैदा होते हैं और हर  प्रीटर्म  शिशु की आँखों का पर्दा चेक होने के लिए आरओपी स्किनिंग जरूरी हैं  । हर साल 5000 शिशु मे रोशनी खत्म कर सकने वाली आरओपी पाई जाती हैं। अगले 5 सालों (2030) तक ये नंबर बढ़कर 17,000 हर साल होने की संभावना है । उन्होंने बताया कि अभी हर साल तकरीबन 3000 शिशु इसकी वजह से अंधे होते हैं।80% वो शिशु हैं  जिनके परिजन जानकारी के अभाव में उनकी जांच नहीं करा पाते है। जिससे वह इस बीमारी की वजह से अंधता के  शिकार हो जाते है। क्योंकि ये जांच 15 से 30 दिन के बीच होती हैं जबकि अधिकतर शिशु  एनआईसीयू NICU में भर्ती होते हैं और केवल 30 % निकु(NICU) में रोप स्क्रीनिंग सुविधा है। रूरल / ग्रामीण एरिया  में और भी कम होती है। इसके अलावा आँखे बाहर से बिल्कुल ठीक दिखने की वजह से परिवार वाले जाँच की ज़रूरत को नहीं समझ पाते और  चेक नहीं कराते। नतीजा— शिशु की आँखों की रोशनी हमेशा के लिये समाप्त  हो जाती है। 

इलाज 3 तरह से होता है( ROP की गंभीरता के हिसाब सेउपचार 

1.आँख में दवा का इंजेक्शन  लगा कर (anti VEGF)

2.लेजर  द्वारा

3. सर्जरी द्वास

समय पर पहली दो ट्रिटमेंट का सक्सेस रेट  90% से भी ज्यादा है।

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