नयी दिल्ली। सीके बिरला अस्पताल गुरुग्राम में हाइपोपिटुटैरिज्म से पीड़ित 26 वर्षीय महिला का सफलतापूर्वक इलाज किया गया. इस बीमारी में एक या उससे ज्यादा पिटुटरी हार्मोन की कमी हो जाती है. इससे प्रेग्नेंसी से जुड़ी और अन्य कई तरह की परेशानियां हो जाती हैं. सीके बिरला अस्पताल में प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की डायरेक्टर डॉक्टर अरुणा कालरा के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने स्टेरॉयड और थायरॉयड को मैनेज करते हुए मरीज का इलाज किया.
मरीज को मासिक धर्म चक्र, कम पीरियड्स और गर्भधारण न कर पाने की शिकायत थी, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. गर्भधारण के लिए उसका प्रारंभिक इलाज जून 2019 में शुरू हुआ था. हालांकि, दो साल के इलाज के बाद महिला को आईवीएफ की सलाह दी गई. इस प्रक्रिया में एक बार उनका ब्लड शुगर लेवल गिर गया और वह बेहोश हो गईं. पूरी तरह से जांच करने पर, यह पाया गया कि उनकी पिट्यूटरी ग्लैंड नॉन-फंक्शनल है, ऐसा हाइपोथायरायडिज्म और एडिसन बीमारी की वजह से था. तब तक महिला के पीरियड्स बंद हो गए थे और अंडाशय ने काम करना बंद कर दिया था. थायरॉयड, स्टेरॉयड और कई अन्य हार्मोन की पूर्ति के लिए महिला को सप्लीमेंट्स देना स्टार्ट किया गया. एक बार जब मरीज की हालत स्थिर हो गई, तो आईवीएफ किया गया और महिला ने जुड़वां बच्चें कंसीव किए.
सीके बिरला अस्पताल में प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की डायरेक्टर डॉक्टर अरुणा कालरा ने केस की जानकारी देते हुए बताया, ”हाइपोपिटिटारिज्म के मरीज में सफल गर्भावस्था होना एक बहुत ही रेयर बात होती है क्योंकि इसमें प्रेग्नेंसी से जुड़े कई रिस्क रहते हैं. जैसे कि गर्भपात, एनीमिया, ब्लड प्रेशर का हाई हो जाना, प्लेसेंटल एब्रप्शन, समय से पहले जन्म और प्रसव के बाद ज्यादा ब्लीडिंग आदि. गर्भावस्था और प्रसवकालीन पीरियड के दौरान हाइपोपिटिटारिज्म को सावधानीपूर्वक मैनेज किया जाना चाहिए और गर्भावस्था से पहले हार्मोन के स्तर को सामान्य रूप से बहाल किया जाना चाहिए. ऐसे मरीजों की बारीकी से निगरानी की जानी चाहिए क्योंकि उनकी दवाओं में बदलाव की जरूरत हो सकती है और भ्रूण के विकास के मूल्यांकन के लिए लगातार अल्ट्रासाउंड भी आवश्यक है. कमी वाले हार्मोन का रिप्लेसमेंट हाइपोपिटिटारिज्म के लिए इलाज का सबसे बेहतर विकल्प बन गया है. इलाज के क्रम में ग्लुकोकोर्तिकोइद, थायरॉयड हार्मोन, सेक्स हार्मोन और वृद्धि हार्मोन शामिल है. मरीज के लिए ये वक्त हालांकि मुश्किल था लेकिन रिजल्ट अच्छे आए और उन्होंने हमारे अस्पताल में दो लड़कों को जन्म दिया.”
डॉक्टर कालरा ने आगे बताया, ”अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, हाइपोपिटिटारिज्म में हर साल प्रति 100,000 मामलों में 4.2 मामलों की अनुमानित घटना और प्रति 100,000 मामलों में 45.5 मामलों का अनुमानित प्रसार है. यह जीवन के लिए खतरा हो सकता है, खासकर अगर किसी के शरीर में एड्रेनोकोर्टिकोट्रोपिक हार्मोन (एसीटीएच या कॉर्टिकोट्रोपिन) की कमी है. जिन महिलाओं में पैनहाइपोपिट्यूटरिज्म की समस्या होती है, उन्हें सामान्य शारीरिक उत्पादन और पिट्यूटरी हार्मोन रिलीज के लिए हार्मोनल रिप्लेसमेंट थेरेपी लेनी चाहिए. खासकर गर्भधारण से पहले के पीरियड और प्रेग्नेंसी के दौरान, हार्मोनल रिप्लेसमेंट थेरेपी का विकल्प चुनना चाहिए.”