दलित स्त्रियों ने क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी

लेखक को पहले अच्छा मनुष्य होना चाहिए : नैमिशराय

प्रयागराज। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग के एलएलटी 2 में आज़ादी के 75 साल के उपलक्ष्य में “स्वाधीनता आंदोलन के दलित नायक“ विषयक व्याख्यान हुआ। मुख्य वक्ता मोहनदास नैमिशराय ने कहा कि दलित स्त्रियों ने 1857 की क्रांति सहित विभिन्न आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

शुक्रवार को आयोजित व्याख्यान में नैमिशराय ने 1857 की क्रांति से पूर्व आदिवासी आंदोलन में स्त्री भूमिका को रेखांकित किया। झांसी में वीरांगना झलकारी बाई का योगदान और उनके बाद दलित आंदोलनकारियों जिनमें बाबू मंगूराम, पृथ्वी सिंह आजाद, उदा देवी, उधम सिंह का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि दलित, आदिवासी एवं पिछड़े समाज के लोगों ने किन परिस्थितियों में स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान दिया, यह जानना भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि क्रांति का हिस्सा वे बने, जिन्हें समाज में वह अस्तित्व नहीं मिला, जो मिलना चाहिए। अपना लेखकीय अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा कि 18 नौकरी करके मैं छोड़ चुका हूं, जिसका फायदा हुआ कि मैं लेखक बन गया।

उल्लेखनीय है कि मोहनदास नैमिशराय की हिन्दी जगत में अच्छी ख्याति है। उन्होंने अब तक 78 पुस्तकें लिखी हैं। उन्होंने कहा कि लेखक को यायावर होना चाहिए, साथ ही सबसे पहले अच्छा मनुष्य होना चाहिए। उन्होंने कहा कि दलित लेखकों को गैर दलितों एवं सामान्य लेखकों को दलितों के बीच जाना चाहिए जिससे उनके संस्कारों की समझ और अपने अनुभव संसार में वृद्धि होगी। अंत में उन्होंने अपनी “बाइयाँ” शीर्षक कविता सुनाकर अपना वक्तव्य समाप्त किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता इलाहाबाद विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. प्रणय कृष्ण ने एवं धन्यवाद ज्ञापन सहायक आचार्य गाजुला राजू ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. जनार्दन ने किया। इस दौरान प्रो. संतोष भदौरिया, प्रो. शिवप्रसाद शुक्ल, डॉ. कुमार वीरेंद्र, डॉ. बसंत त्रिपाठी, डॉ. आशुतोष पार्थेश्वर, डॉ. बृजेश पांडेय, डॉ. दीनानाथ, डॉ. दिनेश कुमार, डॉ. वीरेंद्र मीना, डॉ. अंशुमन कुशवाहा, डॉ. लक्ष्मण प्रसाद गुप्त, डॉ. सुनील कुमार सुधांशु, सरिता मिश्रा सहित अन्य शोधार्थी एवं बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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