माता-पिता के बाद बच्चे से सबसे ज्यादा शिक्षक ही परिचित होता हैः डॉ. मनोज

मुजफ्फरनगर। इंसान के पहले शिक्षक उसके माता-पिता होते है और दूसरा शिक्षक। जो उसे अक्षर का ज्ञान कराता है। गुरु का मार्गदर्शन ही इंसान को सफलता की ओर ले जाता है। लेकिन अब गुरु(शिक्षक) शिक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य को लेकर भी मार्गदर्शन करेंगे। दरअसल गुरुवार को जिला अस्पताल में स्वास्थ्य विभाग द्वारा राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत शिक्षकों के लिए एक दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया गया जिसमें स्वास्थ्य विभाग द्वारा शिक्षकों को उनकी कक्षाओं में ऐसे बच्चों तक पहुंच बढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई जो किसी भी कारण से या तो अवसाद में है या फिर नशे व आत्महत्या जैसे दुस्प्रभावों के इर्द-गिर्द घूम रहे है। कार्यक्रम का शुभारंभ क्लिनिकल फिजिक्लोजिस्ट अंशिका मलिक ने किया और संचालन साईकोथेरेपिस्ट‌ मनोज कुमार ने किया और मानसिक रोगों पर प्रकाश डाला। इस दौरान मनोचिकित्सक डॉ. अर्पण जैन, साईकोथेरेपिस्ट‌ मनोज कुमार, कम्यूनिटी नर्स कपिल आत्रेय व शिक्षक मौजूद रहे।
मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. महावीर सिंह फौजदार ने बताया कि राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत शिक्षकों को मानसिक रोगों के बारे में प्रशिक्षण दिया गया है और उनकी कक्षाओं में ऐसे बच्चों तक पहुंच बढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई जो किसी भी कारण से या तो अवसाद में है या फिर नशे व आत्महत्या जैसे दुस्प्रभावों के इर्द-गिर्द घूम रहे है। ऐसे बच्चों को ढूंढकर उनकी काउंसलिंग की जाएगी और आवश्यकता अनुसार इलाज किया जाएगा। इसके अलावा शिक्षक 9-10 कक्षाओं के प्रत्येक सेक्शन में “मनदूत(लड़का)-मनपरी(लड़की)” बनाएंगे। “मनदूत-मनपरी” ऐसे बच्चों से बात करेंगे जो शिक्षक से अपने मन की बात नहीं कह पाते, उनको खोजकर शिक्षक को बताएंगे ताकि जिला अस्पताल के मन कक्ष में उनकी काउंसलिंग की जा सके। कुल 20 “मनदूत-मनपरी” इस अभियान का हिस्सा बनेंगे।
नोडल अधिकारी डॉ. प्रशांत कुमार ने बताया कि आजकल युवा अपनी पढ़ाई व भविष्य को लेकर चिंतित रहते है जिसके कारण वह अवसाद में चले जाते है, ऐसे में समय-समय पर उनकी काउंसलिंग होना बेहद जरुरी है।
मनोचिकित्सक डॉ. अर्पण जैन ने बताया कि लोग मानसिक बीमारियों को अलग बीमारी समझते हैं जबकि मानसिक बीमारी एक शारीरिक बीमारी होती है जैसे कई प्रकार की बीमारी का इलाज होता है वैसे ही मानसिक बीमारी के लिए भी एक्सपर्ट बैठे हैं इसकी जागरूकता के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रयास किये जा रहे हैं। जिला अस्पताल में निशुल्क इस बीमारी का इलाज है। तनाव सुसाइड का विचार डिप्रेशन एक रोग है तो इनका उपचार भी है। प्रत्येक सोमवार, बुधवार, शुक्रवार को मन कक्ष में ओपीडी की जाती है, जिसमें मानसिक रोगी की काउंसलिंग भी की जाती है।
साईकोथेरेपिस्ट‌ मनोज कुमार ने बताया कि माता-पिता के बाद बच्चे से सबसे ज्यादा शिक्षक ही परिचित होता है। इसी को ध्यान में रखते हुए आज शिक्षकों को बताया गया कि 9-10 कक्षाओं के प्रत्येक सेक्शन में “मनदूत-मनपरी” बनाए जाएं।

“मनदूत-मनपरी” जानेंगे बच्चों से मन की बात
डॉक्टर मनोज ने बताया कि कक्षा में “मनदूत-मनपरी” ऐसे बच्चों से बात करेंगे जो शिक्षक से अपने मन की बात नहीं कह पाते, उनको खोजकर शिक्षक को बताएंगे ताकि जिला अस्पताल के मन कक्ष में उनकी काउंसलिंग की जा सके और आवश्यकतानुसार उनका इलाज किया जा सके। उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रत्येक वर्ष 24 विद्यालयों का चयन किया जाता है और उनके शिक्षकों को मानसिक रोगों के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अलावा समय-समय पर बच्चों को मानसिक रोगों के बारे में जागरुक भी किया जाता है। उन्होंने बताया कि कार्यक्रम का उद्देश्य मानसिक रोगों के बारे में जागरुकता लाना, अवसाद के शिकार लोगों में उम्मीद की किरण जगाना, नजरिया बदलना कुल मिलाकर बेशकीमती जीवन को बचाना है।

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