संसद की सुरक्षा में सेंध : कोर्ट ने नीलम आजाद की जमानत याचिका पर दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा

नई दिल्ली। यहां की एक स्थानीय अदालत ने दिल्ली पुलिस को 13 दिसंबर के संसद की सुरक्षा में सेंध के मामले में छह आरोपियों में से एक नीलम आजाद द्वारा दायर जमानत याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।

नीलम ने दिल्ली पुलिस की हिरासत से तुरंत रिहाई की मांग की है। आजाद ने उनकी गिरफ्तारी को ‘अवैध’ करार देते हुए कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 22 (1) का उल्लंघन है।

पटियाला हाउस कोर्ट की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश हरदीप कौर ने मामले को 10 जनवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है, क्योंकि अदालत द्वारा नियुक्त कानूनी सहायता वकील मौजूद नहीं थे।

सभी छह आरोपी फिलहाल 5 जनवरी तक पुलिस हिरासत में हैं।

नीलम को तीन अन्य आरोपियों के साथ 13 दिसंबर को संसद परिसर से गिरफ्तार किया गया था और 21 दिसंबर को दिल्ली की एक अदालत ने उनकी पुलिस हिरासत 5 जनवरी तक बढ़ा दी थी।

नीलम ने 21 दिसंबर के रिमांड आदेश की वैधता को इस आधार पर चुनौती दी है कि उन्हें राज्य द्वारा 21 दिसंबर के रिमांड आवेदन की कार्यवाही के दौरान खुद का बचाव करने के लिए अपनी पसंद के कानूनी व्यवसायी से परामर्श करने की अनुमति नहीं दी गई थी।

उन्होंने आगे आरोप लगाया कि उन्हें 29 घंटे बाद पेश किया गया, जो कानून के विपरीत था।

याचिका में कहा गया है, “याचिकाकर्ता ने इस बात पर जोर देने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 22(1) में ‘पसंद’ और ‘बचाव’ शब्दों पर भरोसा किया है कि यह एक स्वीकृत तथ्य है कि सरकार ने उसे अपना कानूनी प्रतिनिधित्व करने से रोका है। अदालत द्वारा एक वकील नियुक्त किया गया था, मगर उसे डीएलएसए से सबसे उपयुक्त वकील चुनने का अवसर नहीं दिया गया।”

इसमें कहा गया है कि अदालत ने पहले रिमांड आवेदन पर फैसला करके और फिर याचिकाकर्ता से यह पूछकर कि क्या वह अपनी पसंद के वकील द्वारा बचाव करना चाहती है, एक घातक त्रुटि की है।

याचिका में कहा गया है, “इस प्रकार, संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत गारंटीकृत अधिकार का घोर उल्लंघन किया गया, जिससे 21 दिसंबर का रिमांड आदेश गैरकानूनी हो गया।”

दिल्ली पुलिस ने एक अदालत को बताया है कि मामले के आरोपी “कट्टर अपराधी” थे, जो लगातार अपने बयान बदल रहे थे।

पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज की है और सुरक्षा चूक के मुद्दे की भी जांच कर रही है।

पुलिस ने अदालत को सूचित किया था कि उन्होंने आरोपियों के खिलाफ आरोपों में यूएपीए की धारा 16 (आतंकवाद) और 18 (आतंकवाद की साजिश) शामिल की है।

यह मामला 13 दिसंबर, 2001 को संसद पर हुए आतंकी हमले की 22वीं बरसी पर एक बड़ी सुरक्षा चूक के इर्द-गिर्द घूमता है, जब दो युवक दर्शक दीर्घा से लोकसभा के फर्श पर कूद गए, उन्‍होंने पीला धुआं फैलाया और सरकार विरोधी नारे लगाए, जिसके बाद दो सांसदों ने उन्हें पकड़ लिया।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 22 दिसंबर को निचली अदालत के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें दिल्ली पुलिस को सुनवाई की अगली तारीख यानी 5 जनवरी तक नीलम को एफआईआर की एक प्रति उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया था।

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