बापू का जीवन प्रेरणास्रोत है।मानव जीवन के प्रबंधन का आधार व प्रकृति की व्यापकता है।वैश्विकरण के वर्तमान युग में वैश्विक शांति के संगीतमय निनाद का शाश्वत व अनंत कलरव गान है।वास्तव में सैध्दांतिक जीवन को व्यावहारिकता से जोड़कर सीखने की कला व विपरीत परिस्थिति में भी संयम, अहिंसात्मक संघर्ष व मानवीय गुणों के संवर्धन की निपुणता जीवंत रखना दैवीय गुण है।मानव की प्रत्येक गतिविधियों में प्रकृति संरक्षण, मानवीय भाव, समानता, स्वच्छता, समावेशी भाव, महिला सशक्तिकरण व सम्मान, अन्त्योदय व सर्वोदय उपागम का भाव, कुशलता व सबसे महत्वपूर्ण समाज के प्रति लाभरहित समर्पण होना चाहिए।
प्रतिस्पर्धी परिवेश में मानसिक शांति व सामाजिक सौहार्द्र अतिआवश्यक है।समावेशी विकास व जनोपयोगिता की उत्कृष्ट परंपरा टिकाऊ विकास के लिये जरूरी है।शासन-प्रशासन द्वारा जिस पर कार्य भी त्वरित व स्पष्ट नीति से किया जा रहा है।सत्य की जीत होनी चाहिये।शांति का संसार होना चाहिए ।पूरी धरा परिवार के सामान है।वैश्वीकरण के आधुनिक युग में भले ही वाणिज्यिक भाव से विश्व गांव एक प्लेटफॉर्म में सिकुड़ रहा है, लेकिन वास्तव में यह भाव सार्वभौमिक व शाश्वत सत्य है।लोकतांत्रिक भाव का सकारात्मक संदेश व सामुदायिक भावना का भाव सशक्तिकरण का प्रतीक है।सिध्दांत को व्यावहारिकता से जोड़ना मानव कौशल है।
फलदार वृक्ष टूटते नहीं क्योंकि झुकने का कौशल है।यानी सम्मान भाव हमारी संस्कृति की परंपरा है।सुरक्षा की भावना मजबूत करता है सुशासन का भाव।मानव, मानवीय भाव का स्तंभ है।यह भाव जाग्रत होने में समय लग सकता है लेकिन जगाने का प्रयास करना आवश्यक है।ऐसी स्थिति में आत्मावलोकन व स्व-साक्षात्कार जरूरी है।सदैव सक्रिय रहने की कोशिश करना चाहिए ।मानव कौशल सृजनात्मक दुनिया का आधार है।मानव स्वयं में शांति का तत्व है।मानवता का स्रोत है।नारायण का सार है।कर्म जीवन में आवश्यक है।अकर्मण्यता नाश का द्वार है।संपूर्ण परिवेश जो वृहत विश्व को संजोये है, सजीव व निर्जीव आधार भी मानवीय गतिविधियों से प्रभावित होते हैं।
संतुलित व्यवहार,उत्कृष्ट आचरण, सम्मान, परंपरा (उनको छोड़ते हुये जो सार्वभौमिक मानवीय मूल्यों के विपरीत हैं), समानता, योग्यतानुरूप कौशल विकास व निरंतर अभ्यास , जीवन में सक्रियता व निरंतरता, प्रकृति प्रेम व सहनशीलता का भाव व प्रत्येक ऐसा तत्व जो विश्व शांति व विश्व कल्याण का भाव रखता है, बापू की विचारधारा है।बापू के विचारधारा अथाह सागर की तरह है, जिनका जितना मनन ,अध्ययन,शोध व स्वयं के जीवन में स्वीकार्य किया जायेगा, उतनी ही व्यापकता दृष्टिकोण को मिलेगा, नि:संदेह सादगी व ईश्वर के प्रति झुकाव स्वत: होगा।
21 वीं सदी, वर्तमान वैज्ञानिक तकनीकी युग व निरंतर सतत विकसित होते उत्कृष्ट समाज में प्रत्येक सकारात्मक मानवीय भाव व मानवीय मूल्यों में बापू की विचारधारा जीवित रखनी पड़ेगी,जो मानव कल्याण व विश्व शांति का वास्तविक मंत्र है।