पर्यावरण, विज्ञान और तकनीक, वन व जलवायु पर स्थायी समिति का प्रमुख बने रहना कोई मायने नहीं रखता : जयराम रमेश

नई दिल्ली। कांग्रेस नेता और पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने बुधवार को संसद में महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित किए जाने पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी व वन एवं जलवायु पर स्थायी समिति का अध्यक्ष बने रहने में कोई फायदा नजर नहीं आता।

उन्होंने कहा कि समिति के विषय “मेरे दिल के बहुत करीब हैं और मेरी शैक्षिक और व्यावसायिक पृष्ठभूमि में फिट बैठते हैं, लेकिन मोदी सरकार ने “एक और संस्थागत तंत्र को बेकार कर दिया है।”

रमेश, जो संचार के प्रभारी कांग्रेस महासचिव भी हैं, ने ट्वीट किया : “पिछले कुछ दिनों में संसद के माध्यम से लाए गए तीन बहुत महत्वपूर्ण विधेयकों को जानबूझकर विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन पर स्थायी समिति को नहीं भेजा गया।”

उन्‍होंने आगे लिखा  : “ये ऐसे विधेयक हैं, जो जैविक विविधता अधिनियम, 2002 और वन संरक्षण अधिनियम, 1980 और अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन की स्थापना के लिए मौलिक संशोधन करते हैं। इतना ही नहीं, डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक, 2019 पर समिति ने कई ठोस सुझावों के साथ एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसे वापस ले लिया गया है। मोदी सरकार ने इसके बजाय आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम, 2022 के साथ इसे दरकिनार कर दिया है।”

उन्होंने कहा, “इन परिस्थितियों में मैं इस स्थायी समिति के अध्यक्ष के रूप में बने रहने में कोई महत्व नहीं देखता, जिसके विषय मेरे दिल के बहुत करीब हैं और मेरी शैक्षिक और व्यावसायिक पृष्ठभूमि में फिट बैठते हैं। स्वयंभू सर्वज्ञानी के इस युग में यह सब अप्रासंगिक है और विश्वगुरु मोदी सरकार ने एक और संस्थागत तंत्र को बेकार कर दिया है।”

संसद के मानसून सत्र के आखिरी दिनों में कई विधेयक पारित किए गए।

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