अंतरराष्ट्रीय स्त्री रोग जागरूकता दिवस (10 सितम्बर) पर विशेष
शारीरिक बदलावों के प्रति जागरूक बनें और स्वस्थ रहें : डॉ. संगीता
मेरठ। किशोरावस्था से लेकर रजोनिवृत्ति (मेनोपाज) के दरम्यान तरह-तरह के बदलावों से गुजरने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य देखभाल की अधिक जरूरत होती है। स्त्री रोगों के प्रति की गयी अनदेखी महिलाओं की जान को जोखिम में डालने के साथ ही उनको कई अन्य गंभीर बीमारियों की गिरफ्त में भी ला सकती है। स्त्री रोगों और यौन स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाने के साथ ही परिवार के हर सदस्य को महिलाओं के स्वास्थ्य देखभाल में मददगार बनने की याद दिलाने के लिए ही हर साल 10 सितम्बर को अंतरराष्ट्रीय स्त्री रोग जागरूकता दिवस मनाया जाता है।
पापुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल इंडिया (पीएसआई-इंडिया) से जुड़ीं स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. संगीता गोयल का कहना है कि घर-परिवार में महिलाओं की सेहत का अधिक ख्याल रखने की इसलिए भी जरूरत है क्योंकि सुबह से लेकर रात तक घर के बड़ों, पति और बच्चों की हर छोटी-बड़ी जरूरतों का ख्याल वही रखती हैं। नौकरी पेशा महिलाएं तो घर के साथ दफ्तर की भी जिम्मेदारी निभाती हैं। इसलिए जब वह बिस्तर पर पड़ जाएँ तभी चिकित्सक के पास जाएँ जैसी मानसिकता व सोच को बदलना होगा। समय-समय पर उनकी जांच आदि कराने के साथ ही उनको भी अपने लिए समय निकालने में परिवार के हर सदस्य को मदद करनी होगी ताकि वह भी नियमित रूप से योग, प्राणायाम और ध्यान के साथ अपने लिए मनोरंजन का समय निकाल सकें।
डॉ. संगीता का कहना है कि स्त्री रोग विज्ञान एक तरह से महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ा है, जिसके तहत योनि, गर्भाशय, अंडाशय और स्तन के स्वास्थ्य देखभाल की समुचित व्यवस्था की गयी है। दूसरी ओर प्रसूति विज्ञान के तहत गर्भावस्था, प्रसव व प्रसव पश्चात महिलाओं की देखभाल, उपचार और फालोअप किया जाता है। इन दोनों ही स्थितियों में महिलाओं की देखभाल कर संक्रमण से बचाने के साथ ही गर्भाशय व यौन कैंसर व उससे जुड़ी अन्य बीमारियों से सुरक्षित बनाया जा सकता है। चिकित्सक की मदद से किशोरियां अनियमित मासिक धर्म, मासिक धर्म के दौरान पेट में ऐंठन-मरोड़, अधिक रक्तस्राव जैसी समस्याओं से छुटकारा पा सकती हैं। इसके अलावा बार-बार पेशाब होना, पेशाब के दौरान जलन, योनि क्षेत्र में खुजली, जलन या सूजन जैसी समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है। इन छोटी-छोटी समस्याओं की अनदेखी महिलाओं में बांझपन का कारण भी बन सकती है। इसके लिए पेल्विक एरिया का अल्ट्रासाउंड कराकर सही जानकारी प्राप्त की जा सकती है। थकान, दर्द, सांस फूलना व सूजन जैसी स्थितियों में हीमोग्लोबिन टेस्ट कराना चाहिए, एनीमिक होने की स्थिति में ऐसी दिक्कतें हो सकती हैं। खून की कमी से बचने के लिए हरी पत्तेदार सब्जियों, दूध और फल को अपनी डाईट में जरूर शामिल करना चाहिए। ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग, पैप स्मीयर स्क्रीनिंग, बोन मिनरल डेंसिटी टेस्ट, थायरायड की जांच और लिपिड प्रोफाइल, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, लीवर की जांच भी चिकित्सक की सलाह पर अवश्य करानी चाहिए। स्वास्थ्य इकाइयों पर भी स्क्रीनिंग, जाँच और इलाज के समुचित प्रबंध किये गए हैं। नजदीकी स्वास्थ्य इकाइयों पर एचआईवी जैसे यौन संचरित रोगों के लक्षण और बचाव के बारे में जागरूक भी किया जाता है।
डॉ. संगीता का कहना है कि चिकित्सा विज्ञान के बढ़ते कदम के साथ सरकार द्वारा भी बालिका के जन्म से किशोरावस्था, गर्भावस्था व प्रसव से जुड़ी समस्याओं के समुचित निदान और देखभाल, गर्भनिरोधक और परिवार नियोजन सेवाओं को मुहैया कराने के साथ इस दौरान होने वाले विकारों के इलाज और देखभाल की समुचित व्यवस्था की गयी है। इसके लिए कई योजनाएं और कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, जिसमें स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद भी ली जा रही है। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत बालिकाओं के समग्र विकास पर जोर दिया जाता है। राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत किशोरावस्था में होने वाले बदलावों और मासिक धर्म से जुड़ी जिज्ञासाओं को शांत करने का प्रयास किया जाता है ताकि उनकी पढ़ाई-लिखाई पर कोई असर न पड़ने पाए। स्कूलों में लड़कियों को सेनेटरी नैपकिन तक मुहैया कराये जाते हैं। किशोरावस्था में होने वाले बदलावों के प्रति जागरूकता के लिए स्कूलों में उचित मंच की व्यवस्था की गयी है। स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों द्वारा भी इस दिशा में सराहनीय कदम उठाये जा रहे हैं। महिलाओं को स्वस्थ बनाने के साथ ही उनके अंदर एक आत्मविश्वास का संचार किया जा रहा है ताकि वह हर क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी स्वतंत्र रूप से कर सकें।