नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना और उसे डाउनलोड करना, दोनों ही कार्य पॉक्सो (POCSO – Protection of Children from Sexual Offences) अधिनियम के तहत अपराध माने जाएंगे। यह फैसला मद्रास उच्च न्यायालय के उस निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनाया गया, जिसमें इस प्रकार की गतिविधियों के संबंध में कानूनी स्थिति को स्पष्ट किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय देते हुए चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि इसे किसी भी रूप में सहन नहीं किया जा सकता।
POCSO अधिनियम के तहत बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाए गए कानूनों के तहत चाइल्ड पोर्नोग्राफी को एक गंभीर अपराध माना जाता है। इस फैसले से बच्चों के अधिकारों की रक्षा और समाज में अश्लील सामग्री के प्रसार को रोकने के प्रयासों को और मजबूती मिली है।
जिसमें कहा गया था कि निजी तौर पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना या उसे डाउनलोड करना पॉक्सो अधिनियम के दायरे में नहीं आता है। मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को “चाइल्ड पोर्नोग्राफी” शब्द को “बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री” से बदलने का सुझाव भी दिया है।
बता दें कि इस वर्ष मार्च महीने में, मुख्य न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि बाल पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और उसे अपने पास रखना कोई अपराध नहीं है। मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में चेन्नई के 28 वर्षीय व्यक्ति को दोष मुक्त करते हुए कहा था कि निजी तौर पर बाल पोर्नोग्राफी देखना यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के दायरे में नहीं आता है।
न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश की पीठ ने तर्क दिया कि अभियुक्त ने केवल सामग्री डाउनलोड की थी और निजी तौर पर पोर्नोग्राफी देखी थी और इसे न तो प्रकाशित किया गया था और न ही दूसरों के लिए प्रसारित किया गया था। “चूंकि उसने पोर्नोग्राफिक उद्देश्यों के लिए किसी बच्चे या बच्चों का इस्तेमाल नहीं किया है, इसलिए इसे अभियुक्त के नैतिक पतन के रूप में ही समझा जा सकता है।” चेन्नई पुलिस ने आरोपी का फोन जब्त कर पाया कि उसने चाइल्ड पोर्न वीडियो डाउनलोड कर अपने पास रखी थी। इसके बाद सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 बी और पॉक्सो अधिनियम की धारा 14(1) के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की थी। भारत में, पॉक्सो अधिनियम 2012 और आईटी अधिनियम 2000, अन्य कानूनों के तहत, बाल पोर्नोग्राफी के निर्माण, वितरण और कब्जे को अपराध घोषित किया गया है।