लियाकत मंसूरी के नए उपन्यास “मेरी कहानी और शहनाज़” का हुआ विमोचन

लियाकत मंसूरी के नए उपन्यास “मेरी कहानी और शहनाज़” का हुआ विमोचन

-चेतन मेडिकल कॉम्पलेक्स स्थित निम्बस बुक्स रिटेल आउटलेट में हुआ विमोचन एवं परिचर्चा कार्यक्रम

मेरठ। पत्रकारिता और साहित्य एक दूसरे के पूरक है। पत्रकारिता साहित्य को पाठक वर्ग तक पहुँचाने का सबल माध्यम है और साहित्य पत्रकारिता को अधिक संवेदनायुक्त बनाकर प्रभावशाली बनाने में सहायक है। पत्रकार और साहित्यकार जो लिखते हैं, उसका समाज पर बड़ा असर पड़ता है। दोनों की लेखनी में ताकत होती है, जो लिखा है बस उसमें ईमानदारी का होना जरूरी है। उक्त बातें वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक लियाकत मंसूरी द्वारा लिखे गए उपन्यास “मेरी कहानी और शहनाज” के विमोचन के दौरान आईएमए मेरठ शाखा के अध्यक्ष डा. संदीप जैन ने कहीं।

मंगलवार को चेतन मेडिकल कॉम्पलेक्स स्थित निम्बस बुक्स रिटेल आउटलेट में वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक लियाकत मंसूरी के उपन्यास “मेरी कहानी और शहनाज” का विमोचन था, जिसमें आईएमए मेरठ शाखा के अध्यक्ष डा. संदीप जैन मुख्य अतिथि थे, विमोचन से पहले उपन्यास को लेकर परिचर्चा हुई। कार्यक्रम में खास मेहमान जिला सूचना अधिकारी सुमित कुमार ने कहा, सोशल मीडिया के आने से पत्रकारों की लेखनी कमजोर हुई हैं, कॉपी पेस्ट का चलन बढ़ा है। लियाकत मंसूरी ने इस दौर में उपन्यास लिखकर पत्रकारों को जो रास्ता दिखाया है, मुझे उम्मीद है अन्य पत्रकारों को इससे प्रेरणा मिलेगी। अतिथि वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेंद्र शर्मा ने कहा, व्हाट्सअप पर कोई सूचना आई, उसको आगे तब तक शेयर नहीं करना चाहिए, जब तक उसकी पूरी सच्चाई सामने न आ जाए। कोई संदेश आता है, तो उस पर पहले विचार करें, तभी समाचार बनाए। हर खबर की तस्दीक जरूरी है। वरिष्ठ पत्रकार शादाब रिजवी ने कहा, क्राइम पत्रकार साहित्य की ओर जाए, ये बड़ी बात है। मेरी कहानी और शहनाज में 11 कहानियां हैं, जो अपराध से संबंधित हैं, पत्रकारिता के दौर में जिन समाचारों को लिखा गया, उन्हें कहानी का रूप देना अपने आप में एक बड़ा कारनामा लियाकत मंसूरी ने किया है।  

उत्तर प्रदेश एसोसिएशन ऑफ जर्नलिस्ट्स के जिलाध्यक्ष अजय चौधरी ने कहा, एक साहित्यकार का पत्रकार होना जरूरी नहीं है, बल्कि एक पत्रकार का साहित्यकार होना जरूरी है। पत्रकारिता से साहित्य की ओर जाना आसान नहीं होता, क्योंकि एक पत्रकार के सामने अनेकों परेशानियों होती है, वह आर्थिक रूप से कमजोर भी होता है। जिस दौर में हम जी रहे हैं, वहां अब पढ़ने लिखने का शौक कम हुआ है। ऐसे माहौल में लियाकत मंसूरी ने उपन्यास लिखकर साहित्य को जिंदा रखने का काम किया है।

इन्होंने भी रखें अपने विचार

विमोचन एवं परिचर्चा कार्यक्रम में चौधरी चरण सिंह विवि के उर्दू विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर डा. असलम जमशेदपुरी, मेरठ बार एसोसिएशन के पूर्व सचिव एवं वरिष्ठ अधिवक्ता राम कुमार शर्मा, निम्बस बुक्स की प्रबंधक अलका शर्मा, चौधरी चरण सिंह विवि के उर्दू विभाग की प्रोफेसर शादाब अलीम, भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के कार्य समिति सदस्य काजी शादाब, कांग्रेस यूथ के जिलाध्यक्ष रवि कुमार आदि ने अपने विचार रखें। संचालन त्रिनाथ मिश्रा ने किया।

उपन्यास के बारे में

“मेरी कहानी और शहनाज़” पत्रकार एवं लेखक लियाकत मंसूरी द्वारा लिखित पुस्तक है। यह ऐसा उपन्यास है जो पढ़ने पर पाठकों को शुरु से आखिरी तक बांधे रखता है। लेखक लियाकत मंसूरी ने अपने उपन्यास के पात्र शहनाज़ के साथ जीवन जीते हुए, उससे वार्तालाप करते हुए ऐसी कहानियों का गुलदस्ता पाठकों को थमाया है, जिसमें पवित्र प्रेम से प्यार में पाप तक, मोहब्बत में मासूमियत से लेकर मोह के मकड़जाल, रिश्तों में भोली इंसानी भावनाओं से लेकर जीवन की जटिलताओं पर प्रकाश डाला है। मंसूरी जी की लिखी कहानियां जीवन के आस-पास घटित हुई सी लगती है, क्योंकि यह उनके पत्रकारिता के पेशे के दौरान अपराध जगत में घटित हुई सत्य घटनाओं से प्रभावित है। पर लेखक की अपनी एक उम्दा लेखन शैली है। जिसमें वे कहानियों को रोचक मोड़ देते है। शहनाज़ का पात्र और लेखक की उससे घनिष्ठता भी कहानियों में तारतम्य बनाए रखती है। इस उपन्यास की सब कहानियां अंत में एक शिक्षा जरूर देती है, जिसमें पाठक स्वयं मानवीय अनुभव ग्रहण कर लेता है। ये कहानियां सरल तो है पर मार्मिक और विचारोत्तेजक प्रतिबिंब दर्शाती है। जो इसे पढ़ने योग्य, रोचक और आकर्षक बनाती है। पाठक की उत्सुकता बनी रहती है कि आगे कहानी में क्या होगा या ऐसा होने की जगह, यह होता तो ठीक रहता। यह कहानियां आत्म-खोज भी करवाती है जिसमें शहनाज़ के चरित्र के माध्यम से, लेखक आत्म-खोज और व्यक्तिगत विकास के विषयों पर भी दृष्टि डालते हैं। कहीं-कहीं पर काव्यात्मक भाषा शैली लेखक द्वारा लिखे संवादों को उच्च बनाती है। तो कही विचारोत्तेजक शैली इसे पढ़ने में सुंदर और अभिव्यंजक बनाती है।

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